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Sunday, April 22, 2012

निर्मल सच


अपनी नज़रों से जब जब मैं गिरता गया,
मेरा रुतबा ज़माने में बढता गया! 

मेरे अखलाक की ज़बरूत घटती गई,
पैसा मेरी तिजोरी में बढता गया!


मेरे होंठों से मुस्कान जाती रही,
मेरा एहतिराम महफ़िल में बढता गया!

सब सितारे मुझे मूहँ चिढाते रहे,
मैं सिम्त-ए-तारीकी बढता गया!


Tuesday, July 5, 2011

"पेड या ताबूत"



आपको याद है न,
वो पेड!

नहीं! बरगद का नहीं!

अरे!


वो! जो आप सब के साथ,
जवाँ हुआ था,


अरे वो ही!

जो पौधे से वृक्ष बनने की कथा,
बडे दिलचस्प अँदाज़ मे बयाँ करता था!!

जिस के नीचे,
कई प्रेमी जोडे,
कभी न बिछ्डने की
कसम खा के,गये

और फ़िर कभी 
लौट के न आये,
’एक साथ’!

और जो गुहार लगाता था,
कि अगर कुछ नहीं हो सकता,
तो मुझे जाने दो,
पेपर मिल के आहते में,
और बन जाने दो,
हिस्सा उस कहानी का जो,
लिखी जाये मेरे सफ़ों पे,

अब पेड नहीं रहा,
टिम्बर बन गया,
वो पिछले हफ़्ते,

सुना हैं,
एक ताबूत बनाने वाली फ़र्म को मिला है
ठेका!
उस जीते जागते दरख्त को,
ताबूतों मे तब्दील कर देने का,
ताकि ताज़िन्दगी जो,
बात करता रहा "ज़िन्दगी" की,

उसे भी!

एहसास तो हो कि,
मौत भी कितनी हसीन और अटल सच्चाई है!  




Saturday, May 7, 2011

मै और मेरी तिश्‍नगी!




मेरी तिश्‍नगी ने मुझको ऐसा सिला दिया है,
बरसात की बूँदों ने ,मेरा घर जला दिया है।

मैने जब भी कभी चाहा, मेरी नींद संवर जाये,
ख्वाबों ने मेरे आके ,मुझको जगा दिया है।

मेरी किस खता के बदले,मुझे ऐसी खुशी मिली है,
मेरी आँख फ़िर से नम है,मेरा दिल भरा भरा है।

मै अकेला यूँ ही अक्सर, तन्हाइयों में खुश था,
तूने  मेरे पास आ के, मुझको फ़ना किया है।

जो खुशी मुझे मिली है, इसे मैं कहाँ सजाऊँ,
कहीं जल न जाये दामन, मेरा दिल डरा डरा है।



Monday, July 12, 2010

तितलियां और चमन!


चमन में गुलों का नसीब होता है,
जंगली फ़ूल पे कब तितिलियां आतीं है।

कातिल अदा आपकी निराली है,
हमें कहां ये शोखियां आतीं हैं।

एक अरसे से मोहब्बत खोजता हूं,
अब कहां तोतली बोलियां आतीं है!

गद्दार हमसाये पे न भरोसा करना,
प्यार के बदले में, गोलियां आतीं हैं।

घर मेरा खास था, सो बरर्बाद हुया,
हर घर पे कहां बिजलियां आतीं हैं?



Saturday, June 26, 2010

नसीब !

ज़िन्दगी अच्छी है,
पर अज़ीब है न?

जो बुरा है,
कितना लज़ीज़ है न?

गुनाह कर के भी वो सुकून से है,
अपना अपना ज़मीर है न?

मैं तुझीसे मोहब्बत करता हूं
आखिर मेरा भी रकीब है न?

कैसे उठाऊं मै नाज़ तेरा,
कांधे पर सलीब है न?

उसका दुश्मन कोई नहीं है यहां
वो सच मे कितना बदनसीब है न?

सोना चांदी बटोरता रहता है,
बेचारा कितना गरीब है न?

दर्द पास आयेगा कैसे,
तू तो मेरे करीब है न?





Friday, January 15, 2010

अपनी कहानी ,पानी की ज़ुबानी !

आबे दरिया हूं मैं,ठहर नहीं पाउंगा,
मेरी फ़ि्तरत भी है के, लौट नहीं आउंगा. 


जो हैं गहराई में, मिलुगां  उन से जाकर ,
तेरी ऊंचाई पे ,मैं पहुंच नहीं पाउंगा।


दिल की गहराई से निकलुंगा ,अश्क बन के कभी,
बदद्दूआ बनके  कभी, अरमानों पे फ़िर जाउंगा।


जलते सेहरा पे बरसुं, कभी जीवन बन कर,
सीप में कैद  हुया ,तो मोती में बदल जाउंगा।


मेरी आज़ाद पसन्दी का, अश्क है एक सबूत,
खारा हो के भी, समंदर नहीं कहलाउंगा।


मेरी रंगत का फ़लसफा भी अज़ब है यारों,
जिस में डालोगे, उसी रंग में ढल जाउंगा।





Thursday, November 12, 2009

तन्हाई का सच!



कल रात सवा ग्यारह बजे,
मैं अचानक तन्हा हो गया!

एक दम तन्हा!  


ऐसा नहीं के इस से पहले,
मुझे कभी मेरी तन्हाई का अहसास नहीं था!


पर कल रात मैने एक गलती की!


अपने Mobile की phone book को  browse  करने लगा!
दिल में आया कि देखूं कौन कौन वो लोग हैं,

जिन्हें गर अभी  call  करूं तो,
बिन अलसाये,बिन गरियाये (दिल में)
मेरी call लेगें (और खुश होगें!)

सच कह्ता हूं!
मैने इस से ज्यादा तन्हाई कभी मह्सूस नहीं की!

क्यों के एक भी Contact  ऐसा नहीं था जिसे,
मैं बेधडक call कर सकूं,


एक Thursday evening को!
(कल एक  working day है!)


सिर्फ़ ये कहने के लिये!


बहुत दिन हुये ’तुम से बात नहीं हुई’

और वो खुश हो के कहे,




"अच्छा लगा के तुमने याद किया!"
(झूंठ ही सही!!!!)


"सच में" कितना तन्हा हूं मैं!


और आप?  









Monday, September 21, 2009

दरख्त का सच!

मैने एक कोमल अंकुर से,
मजबूत दरख्त होने तक का
सफ़र तय किया है.

जब मैं पौधा था,
तो मेरी शाखों पे,
परिन्दे घोंसला बना ,कर
ज़िन्दगी को पर देते थे.

नये मौसम, तांबई रंग की
कोपलों को हरी पत्तियों में
बदल कर उम्मीद की हरियाली फ़ैलाते थे.

मैने कई प्रेमियों को अपनी घनी छांव के नीचे
जीवनपर्यंत एक दूजे का साथ देने की कसम खाते सुना है.

पौधे से दरख्त बनना एक अजीब अनुभव है!

मेरे "पौधे पन" ने मुझे सिखाया था,
तेज़ आंधी में मस्ती से झूमना,
बरसात में लोगो को पनाह देना,
धूप में छांव पसार कर थकान मिटाना.

अब जब से मैं दरख्त हो गया हूं,
ज़िंदगी बदल सी गई है.
मेरा रूप ही नहीं शायद,
मेरा चरित्र भी बदल गया है.

नये मौसम अब कम ही इधर आतें है,
मेरे लगभग सूखे तने की खोखरों में,
कई विषधर अपना ठिकाना बना कर
पंछियों के अंडो की तलाश में,
जीभ लपलपाते मेरी छाती पर लोटते रहते हैं.

आते जाते पथिक
मेरी छाया से ज्यादा,मेरे तने की मोटाई आंक कर,
अनुमान लगाते है कि मै,
कितने क्यूबिक ’टिम्बर’ बन सकता हूं?

कुछ एक तो ऐसे ज़ालिम हैं,
जो मुझे ’पल्प’ में बदल कर,
मुझे बेजान कागज़ बना देने की जुगत में हैं.

कभी कभी लगता है,
इससे पहले कि, कोई तूफ़ान मेरी,
कमज़ोर पड गई जडों को उखाड फ़ेकें,
या कोई आसमानी बिजली मेरे
तने को जला डाले,
और मै सिर्फ़ चिता का सामान बन कर रह जाऊं,
कागज़ में बदल जाना ही ठीक है.

शायद कोई ऐसा विचार,
जो ज़िंदगी के माने समझा सके,
कभी तो मुझ पर लिखा जाये,
और मैं भी ज़िन्दगी के
उद्देश्य की यात्रा का हिस्सा हो सकूं.

और वैसे भी, देखो न,
आज कल ’LG,Samsung और Voltas
के ज़माने में ठंडी घनी छांव की ज़रूरत किसको है?

Saturday, June 27, 2009

शायद सच हो!


Abraham Lincoln was elected to Congress in 1846.
John F. Kennedy was elected to Congress in 1946.


Abraham Lincoln was elected President in 1860.
John F. Kennedy was elected President in 19 60.


Both were particularly concerned with civil rights.
Both wives lost their children while living in the White House.


Both Presidents were shot on a Friday.
Both Presidents were shot in the head.


Now it gets really weird.


Lincoln 's secretary was named Kennedy.
Kennedy's Secretary was named Lincoln .


Both were assassinated by Southerners.
Both were succeeded by Southerners named Johnson.


Andrew Johnson, who succeeded Lincoln , was born in 1808.
Lyndon Johnson, who succeeded Kennedy, was born in 1908.


John Wilkes Booth, who assassinated Lincoln , was born in 1839.
Lee Harvey Oswald, who assassinated Kennedy, was born in 1939.


Both assassins were known by their three names.
Both names are composed of fifteen letters.

Now hang on to your seat.

Lincoln was shot at the theater named 'Ford.'
Kennedy was shot in a car called ' Lincoln ' made by 'Ford.'

Lincoln was shot in a theater and his assassin ran and hid in a warehouse.
Kennedy was shot from a warehouse and his assassin ran and hid in a theater.

Booth and Oswald were assassinated before their trials.

And here's the kicker...

A week before Lincoln was shot, he was in Monroe, Maryland.
A week before Kennedy was shot, he was with Marilyn Monroe.

एक e-mail के ज़रिये मिला अनोखा सच! शायद सच हो!

Saturday, May 16, 2009

तुम्हारा सच!


ये कब पता था दर्द के मायने भी आयेगे,
हम शेर कहें एसे ज़माने भी आयेगें।

कल रात इस ख्याल से मैं सो नहीं सका,
गर सो गया तो ख्याब सुहाने भी आयेगें।

दुश्मन जो आये कब्र पे,मिट्टी ने ये कहा,
छुप जाओ अब दोस्त पुराने भी आयेंगे।

जो दर्द गैर दे के गये, उनका भी शुक्रिया
अब दोस्त मेरे दिल को दुखाने भी आयेगें।

मैं सज़दा कर रहा था, और पत्थर बना था तू
इस दर पे कभी सर को झुकाने ना आयेगें।

गर तू खुदा था तो मुझे सीने से लगाता,
अब रूठ के तो देख हम मनाने न आयेगें।

इन्सान तो हम भी हैं संगे राह तो नहीं
ठोकर लगे तो लोग क्या उठाने ना आयेगें।


Sunday, April 26, 2009

एक बार फिर से पढें!

हाथ में इबारतें,लकीरें थीं, 
सावांरीं मेहनत से तो वो तकदीरें थी।
  
जानिबे मंज़िल-ए-झूंठ ,मुझे भी जाना था, 
पाँव में सच की मगर जंज़ीरें थीं।
 
मैं तो समझा था फूल ,बरसेंगे, 
उनके हाथों में मगर शमशीरें थीं। 
 
खुदा समझ के रहेज़दे में ताउम्र जिनके, 
गौर से देखा तो , वो झूंठ की ताबीरे॑ थीं। 
 
पिरोया दर्द के धागे से तमाम लफ़्ज़ों को, 
मेरी ग़ज़लें मेरे ज़ख़्मों की तहरीरें थीं।